जो तिरे हुस्न के क़रीं से गए वो तो दुनिया समेत दीं से गए वो कि रहता था जिन मकानों में अब वो सारे मकाँ मकीं से गए हौसला इस क़दर कहाँ सब में हम तिरे इश्क़-ए-बे-यक़ीं से गए मौत आई हमें तिरे दर पर हम गए भी तो आफ़रीं से गए इक तिरा बुत तराशने के लिए कितने सज्दे मिरी जबीं से गए जिस जगह क़ैस का ठिकाना था आज उश्शाक़ सब वहीं से गए उस ज़मीं-ज़ाद की झलक के लिए किस क़दर आसमाँ ज़मीं से गए आस्तीं क्या गई 'ख़िज़र' मेरी सारे अहबाब आस्तीं से गए