जो तेरे हुस्न में नर्मी भी बाँकपन भी है वो कैफ़-ए-ताज़ा भी है नश्शा-ए-कुहन भी है मुझे तो चैन से रहने दे ऐ दिल-ए-वहशी कि दश्त भी है तिरे सामने चमन भी है कहाँ की मंज़िल-ए-मक़्सूद रास्ता भी नहीं सफ़र में साथ ख़ुदा भी है अहरमन भी है वो एक लम्हा-ए-पर्रां वो एक साअ'त-ए-दीद हिना ब-दस्त भी है लाला-पैरहन भी है ब-चश्म-ए-शबनम-ए-गिर्यां अगर कोई देखे तिरा लिबास ही ऐ गुल तिरा कफ़न भी है वो एक गोशा-ए-जन्नत जिसे दकन कहिए निगार शाइ'र-ए-बदनाम का वतन भी है