जो था रिया से पाक ज़माना कहाँ गया वो दौर ज़िंदगी का सुहाना कहाँ गया हर चैन पा के किस लिए बेचैन है बशर पाता था वो सुकूँ जो ठिकाना कहाँ गया माहौल क्यों है आज गुलिस्ताँ का मातमी वो बुलबुलों का शोर मचाना कहाँ गया आते थे झील पर जो परिंदे कहाँ गए उन का जो था वो ठोर-ठिकाना कहाँ गया