जो तिरे ग़म की गिरानी से निकल सकता है हर मुसीबत में रवानी से निकल सकता है तू जो ये जान हथेली पे लिए फिरता है तेरा किरदार कहानी से निकल सकता है शहर-ए-इंकार की पुर-पेच सी इन गलियों से तू फ़क़त इज्ज़-बयानी से निकल सकता है गर्दिश-ए-दौर तिरे साथ चले चलता हूँ काम अगर नक़्ल-ए-मकानी से निकल सकता है ऐ मिरी क़ौम चली आ मिरे पीछे पीछे कोई रस्ता भी तो पानी से निकल सकता है