जो तू हो पास तो देखूँ बहार आँखों से वगर्ना करते हैं गुल कार-ए-ख़ार आँखों से कहाँ है तू कि में खींचूँ हूँ राह में तेरी बिसान-ए-नक़्श-ए-क़दम इंतिज़ार आँखों से ज़ि-बस कि आतिश-ए-ग़म शोला-ज़न है सीने में गिरीं हैं अश्क की जागह शरार आँखों से मैं याद कर दुर-ए-दनदान-ए-यार रोता हूँ टपकते हैं गुहर-ए-आब-दार आँखों से टुक आ के देख तू ऐ सर्व-क़द मिरा अहवाल रवाँ है ग़म में तिरे जूएबार आँखों से चढ़ाऊँ दस्ता-ए-नर्गिस मज़ार-ए-मजनूँ पर जो देखूँ आज मैं रू-ए-निगार आँखों से चमन में कल कोई तुझ सा परी नज़र न पड़ा अगरचे देखे हैं जा कर हज़ार आँखों से हुआ है दीदा-ए-'बेदार' गुल-फ़िशाँ जब से गिरा है तब से ये अब्र-ए-बहार आँखों से