जो तुम्हें याद किया करते हैं आह-ओ-फ़रियाद किया करते हैं काम उन का है शब-ओ-रोज़ यही सितम ईजाद किया करते हैं तेरे मय-ख़ाने को ऐ पीर-ए-मुग़ाँ हमीं आबाद किया करते हैं अपनी वहशत से तिरे दीवाने दश्त आबाद किया करते हैं जाम-ए-मय पी के शब-ए-फ़ुर्क़त में दिल को हम शाद किया करते हैं मसअले शैख़ के जो सुनते हैं उम्र बरबाद किया करते हैं 'मशरिक़ी' कोई सुने या न सुने हम तो फ़रियाद किया करते हैं