जो वफ़ा का रिवाज रखते हैं साफ़-सुथरा समाज रखते हैं क़ाबिल-ए-रहम हैं वो इंसाँ जो ख़ाहिश-ए-तख़्त-ओ-ताज रखते हैं भेज कर हम जहेज़ पर ला'नत अहल-ए-ग़ुर्बत की लाज रखते हैं दिल-कुशादा भी हैं उन्ही के जो सर पे ग़ुर्बत का ताज रखते हैं बरकत अल्लाह देता है 'साहिल' लाख हम कम अनाज रखते हैं