जो यहाँ हाज़िर है वो मिस्ल-ए-गुमाँ मौजूद है और जो ग़ाएब है उस की दास्ताँ मौजूद है ऐ ग़ुबार-ए-ख़्वाहिश-ए-यक-उम्र अपनी राह ले इस गली में तुझ से पहले इक जहाँ मौजूद है अब किसी अम्बोह-ए-गुम-गश्ता की जानिब हो सफ़र और कोई चुपके से कह दे तू कहाँ मौजूद है शायद आ पहुँचा है अहद-ए-इंतिज़ार-ए-गुफ़्तुगू चार जानिब ख़िल्क़त-ए-लब-बस्तगाँ मौजूद है रात फिर आँखों से बह निकली तमन्ना-ए-विसाल ऐसा लगता था कि तू भी दरमियाँ मौजूद है पहले थी इक तिश्नगी महरूमियों से हम-कनार अब रगों में नश्शा-ए-उम्र-ए-रवाँ मौजूद है अज़्म ख़ुद को कारवान-ए-नफ़'अ में शामिल न कर तेरे शानों पर अभी बार-ए-ज़ियाँ मौजूद है