जोश हर मौज में उछाल का था हौसला हम में भी कमाल का था लोग क्यों अपनी सम्त भूल गए सूई का रुख़ अगर शुमाल का था हो गए मेरे रास्ते रौशन ये उजाला तिरे जमाल का था मैं ने भी अपने फन निकाल लिए उस का अंदाज़ इश्तिआ'ल का था मस्जिदों में दुआएँ ठहर गईं वक़्त शायद अभी ज़वाल का था नाम-ए-महबूब पर ही जाँ दे दी इश्क़ तो हज़रत-ए-बिलाल का था हम भी रखते थे सर पे ताज 'ज़फ़र' जब करम रब्ब-ए-ज़ुल-जलाल का था