जोश-ए-जुनूँ को कोई भी पैमाना चाहिए पानी को अब तो सर से गुज़र जाना चाहिए मेरे अलावा कौन है उस का कोई नहीं लाश-ए-ख़याल-ए-यार को कफ़नाना चाहिए मानूसियत ने घर की फ़ज़ा को बदल दिया दीवार-ओ-दर को मैं नहीं बेगाना चाहिए मुमकिन है उम्र भर की थकन नज़्र-ए-लहर हो साहिल की रेत पर मुझे सुस्ताना चाहिए कल हो न हो वो आए न आए सो आज ही पहलू में ख़ुश-जमाल के मर जाना चाहिए बीमार जब सुपुर्द-ए-ख़ुदा कर दिया तो फिर अब किस लिए दुआओं का नज़राना चाहिए मैं हाथ मल रही हूँ 'हुमा' उस से रूठ कर दिल में सही उसे भी तो पछताना चाहिए