जोश-ए-वहशत में मुसल्लम हो गया इस्लाम-ए-इश्क़ कूचा-गर्दी से मिरी पूरा हुआ एहराम-ए-इश्क़ मेरे मरने से खुला हाल-ए-मोहब्बत ख़ल्क़ पर संग-ए-मर्क़द बन गया आईना-ए-अंजाम-ए-इश्क़ ये सिला पाया वफ़ा का हुस्न की सरकार से चेहरा-ए-आशिक़ की ज़र्दी है ज़र-ए-इनआ'म-ए-इश्क़ पहले था रुख़ का तसव्वुर अब है गेसू का ख़याल वो थी सुब्ह-ए-इश्क़ गोया और ये है शाम-ए-इश्क़ आस्तान-ए-यार पर हर वक़्त सज्दे कीजिए है यही बस दीन-ए-इश्क़ ईमान-ए-इश्क़ इस्लाम-ए-इश्क़ हूँ असीर-ए-ज़ुल्फ़ ज़ाहिर है ख़त-ए-तक़्दीर से दाएरे हर्फ़ों के मिल कर बन गए हैं दाम-ए-इश्क़ अर्श-ए-आज़म से भी ऊँची हो गई मेरी फ़ुग़ाँ आज तक पाया न ऐ 'आज़ाद' औज-ए-बाम-ए-इ'श्क़