जुदा होते नहीं ऐसे भी कुछ आज़ार होते हैं सफ़र के आख़िरी रस्ते बड़े दुश्वार होते हैं जो चेहरे पर लिखी तहरीर पढ़ लेते हैं पल भर में कुछ ऐसे लोग हैं मिस्ल-ए-सितारा-बार होते हैं यहाँ जो भी है सब बातिल नज़र का एक धोका है तो फिर किस बात पर हम यूँही दा'वेदार होते हैं चट्टानों पर हरे पत्ते कहीं नग़्मा-सरा पत्थर नवेद-ए-ज़िंदगी के ये ही तो आसार होते हैं हमारी भीगती आँखें तुम्हारे मुस्कुराते लब मोहब्बत के यही लम्हे बड़े सरशार होते हैं हमारी मुस्कुराहट तो हमारे ग़म छुपाती है हमारे राज़-दाँ घर के दर-ओ-दीवार होते हैं सफ़र जितना भी तय पाया ये सारा खेल लगता है यूँ लगता है सभी कार-ए-हुनर बे-कार होते हैं जो तुम ने कर दिया सो कर दिया दरिया में जाने दो फिर इस के बा'द तो शिकवे गिले बे-कार होते हैं