जुदा किया तो बहुत ही हँसी-ख़ुशी उस ने बदल दिया है अब अंदाज़-ए-बेरुख़ी उस ने वो रंग रंग उड़ा ख़ुशबुओं में फैल गया झटक दिया है मिरा दामन-ए-तही उस ने जिसे सुना के मुझे ख़ौफ़-ए-सर-ज़निश सा रहा उसी कलाम पे बढ़-चढ़ के दाद दी उस ने वो मेरे साथ शुरू-ए-सफ़र चला था मगर हुजूम-ए-शहर में ली राह और ही उस ने हुआ हूँ जुरअत-ए-जुर्म-ए-वफ़ा से भी महरूम सज़ा ये दी कि ख़ता मेरी बख़्श दी उस ने अब अपनी कोई सदा है न अपना कोई पता पिला दिया है मुझे ज़हर-ए-आगही उस ने दर-ए-सुकूत पे 'हाली' बहुत है शोर-ए-सदा बपा किया है वो तूफ़ान-ए-ख़ामुशी उस ने