जुगनू के साथ साथ ही महताब भी तो हैं हम दरिया-बुर्द गौहर-ए-नायाब भी तो हैं यूँ ही नहीं हैं लाल-ओ-गुहर अपने हाथ में दरिया के हम वजूद में ग़र्क़ाब भी तो हैं तुम को तो सिर्फ़ मौजों पे हासिल है बरतरी दरिया-ए-कू-ए-यार में गिर्दाब भी तो हैं जाएज़ हैं बे-क़रारियाँ लेकिन जानिब-ए-दिल उस की नवाज़िशों के कुछ आदाब भी तो हैं बस इक झलक दिखा के कहाँ चल दिए हुज़ूर इन बे-क़रार आँखों में कुछ ख़्वाब भी तो हैं फिर किस तरह से प्यास के मारों को सब्र हो कुछ लोग मेरे सहर में सैराब भी तो हैं ये क्या की 'तश्ना' 'तश्ना' कहे जा रहे हैं आप 'तश्ना' के साथ साथ कुछ अलक़ाब भी तो हैं