जुम्बिश-ए-दिल नहीं बेजा तू किधर भूला है कोई लड़का इसे गहवारा समझ झूला है ख़ून तू ने जो बहाया है सियह-बख़्तों का तेरे कूचे में अजब शाम ओ शफ़क़ फूला है ख़ूब रिंदों ने उड़ाए हैं मज़े दुनिया के हीज़ को बक्र है मर्दों की वो मदख़ूला है बेहतर है इश्क़-ए-मजाज़ी तुझे बेकारी से जब तलक इश्क़-ए-हक़ीक़ी हो ये मशग़ूला है पा-ए-हिम्मत तो मिरा लंग नहीं है 'हातिम' गो मिरे काम के तईं दस्त-ए-फ़लक लूला है