जुनूँ ही के अलम-बरदार थे हम सो दुनिया के लिए बेकार थे हम किसी की राह में हाएल हुए थे किसी को साया-ए-दीवार थे हम पहुँच में थे हमारी चाँद सूरज मगर जुगनू के पैरोकार थे हम हमें तक़रीर करना भी था लाज़िम और उस पर साहिब-ए-किरदार थे हम बग़ावत तो हमारे ख़ून में थी कि इक जुरअत की पैदावार थे हम अज़ान۔ए-इश्क़ होती थी जहाँ से उसी मस्जिद की इक मीनार थे हम तिरी क़ुर्बत हमें हासिल नहीं थी तिरी फ़ुर्क़त के तो हक़दार थे हम मुख़ालिफ़ हो गए नाराज़ तो क्या नतीजे के लिए तय्यार थे हम