जुनूँ सुकून ख़िरद इज़्तिराब चाहती है तबीअत आज नया इंक़लाब चाहती है न आज तेरी नज़र से बरस रहा है नशा न मेरी तिश्ना-लबी ही शराब चाहती है नहीं सुरूर-ए-मुसलसल निबाह पर मौक़ूफ़ मुदाम आँख कहाँ लुत्फ़-ए-ख़्वाब चाहती है सुना रहा हूँ फ़साना तिरी मोहब्बत का ये काएनात अमल का हिसाब चाहती है वो अज़्म-हा-ए-सफ़र ला-ज़वाल होते हैं हयात मौत को जब हम-रिकाब चाहती है झुलस रहा है बदन धूप में जवानी की ये आग ज़ुल्फ़ का गहरा सहाब चाहती है हरीफ़-ए-हुस्न-ओ-मोहब्बत हो देर तक 'शौकत' निगार-ए-उम्र वो अहद-ए-शबाब चाहती है