जुनूँ का राज़ मोहब्बत का भेद पा न सकी हमारा साथ ये दुनिया मगर निभा न सकी बिखर गया हूँ फ़ज़ाओं में बू-ए-गुल की तरह मिरे वजूद में वुसअत मिरी समा न सकी हर इक क़दम पे सलीब-आश्ना मिले मुझ को ये काएनात वफ़ाओं का बार उठा न सकी पटक के रह गई सर अपना रहगुज़ारों से मिरी सदा दिल-ए-कोहसार में समा न सकी खुली हवा की फ़सीलों में ज़िंदगी है असीर फ़रेब-ए-रंग से माहौल को बसा न सकी रज़ा तुलू-ए-सहर तक है ज़िंदगी शब की ये बात अहल-ए-सितम की समझ में आ न सकी