जुनूँ का रंग भी हो शोला-ए-नुमू का भी हो सुकूत-ए-शब में इक अंदाज़ गुफ़्तुगू का भी हो मैं जिस को अपनी गवाही में ले के आया हूँ अजब नहीं कि वही आदमी अदू का भी हो वो जिस के चाक-ए-गरेबाँ पे तोहमतें हैं बहुत उसी के हाथ में शायद हुनर रफ़ू का भी हो वो जिस के डूबते ही नाव डगमगाने लगी किसे ख़बर वही तारा सितारा-जू का भी हो सुबूत-ए-मोहकमी-ए-जाँ थी जिस की बुर्रीश-नाज़ उसी की तेग़ से रिश्ता रग-ए-गुलू का भी हो वफ़ा के बाब में कार-ए-सुख़न तमाम हुआ मिरी ज़मीन पे इक मा'रका लहू का भी हो