जुनून-ए-शौक़ की दार-ओ-रसन की बात चली हमारे बा'द हमारे चलन की बात चली ग़म-ए-हयात ने सब कुछ भुला दिया था मगर तड़प उठे जो तिरी अंजुमन की बात चली बयान-ए-मौसम-ए-गुल दास्तान-ए-रक़्स-ए-बहार ब-तर्ज़-ए-नौ उसी गुल-पैरहन की बात चली फ़ज़ा-ए-सुब्ह-ए-गुलिस्ताँ से शाम-ए-ज़िंदाँ तक ख़ुलूस-ए-हम-नफ़सान-ए-वतन की बात चली शुआ-ए-दर्द से जब संग-ए-बे-हिसी पिघला तिलिस्म-ए-शीशा-गिरान-ए-कुहन की बात चली