जुर्म क्या है जो रहें आप के हम दिल के क़रीब क्या नहीं रहते सितारे मह-ए-कामिल के क़रीब जा के कहती है जफ़ा पंजा-ए-क़ातिल के क़रीब और कुछ देर ठहर जाइए बिस्मिल के क़रीब क्या सबब है कि उठा शोर गुलिस्ताँ में नदीम फ़स्ल-ए-गुल आई कि वो आए अनादिल के क़रीब ज़िंदगी करते हैं जो सीना-ए-दरिया पे बसर लुत्फ़ क्या ख़ाक मिलेगा उन्हें साहिल के क़रीब हम वो परवर्दा-ए-तूफ़ाँ हैं पस-ए-मर्ग जिन्हें दफ़्न होना भी गवारा नहीं साहिल के क़रीब आ ही जाएँगे नज़र चश्म-ए-बसीरत हो अगर वो यहीं होंगे यहीं होंगे कहीं दिल के क़रीब तुम क़रीब इतने मिरे आओ कि मिट जाए दुई फ़ासला ये भी बहुत है कि रहें दिल के क़रीब दिल तिरा गर न बने आइना मेरा ज़िम्मा रह के तू देख तो ले जौहर-ए-क़ाबिल के क़रीब बे-कसी रोती है उस आबला-पा रहरव पर थक के जो बैठ गया राह में मंज़िल के क़रीब अक्स को उन के बसा लेता मैं आँखों में 'कमाल' काश वो आते कभी दीदा-ए-बिस्मिल के क़रीब