जुर्म तेरा न सही मेरी सज़ा ख़ूब सही आइना-ख़ाना-ए-हस्ती की अदा ख़ूब सही पास से तो तिरी आँखों के भँवर ले डूबे दूर से जल्वा-ए-गिर्दाब-ए-बला ख़ूब सही कैसा सावन है कि जो खुल के बरसता ही नहीं देखने में तिरी ज़ुल्फ़ों की घटा ख़ूब सही घर में जो बात है वो तेरे शबिस्ताँ में कहाँ जान-ए-याराँ तेरे कूचे की हवा ख़ूब सही ज़ौक़-ए-जल्वत में तब-ओ-ताब-ए-हक़ीक़त भी तो है शौक़-ए-ख़ल्वत-कदा-ए-साज़-ओ-सदा ख़ूब सही दिन को सहरा में बगूलों का सफ़र भी देखो सुब्ह-दम बाग़ में ये रक़्स-ए-सबा ख़ूब सही सर-ज़मीनें हैं बहुत रूह के पाताल में भी माह-ओ-मिर्रीख़ पे आवाज़-ए-दरा ख़ूब सही दोस्त ज़िंदान-ए-अनासिर से रिहाई मा'लूम दश्त-ए-इम्कान-ए-तख़य्युल की फ़ज़ा ख़ूब सही वुसअ'तें और बहुत हैं ग़म-ए-दौराँ के लिए क़िबला-ए-जाँ के लिए क़िबला-नुमा ख़ूब सही ख़ूब-तर है मिरी तज़ईन से हर पैकर-ए-जाँ तेरी तख़्लीक़ का हर नक़्श-ए-बक़ा ख़ूब सही पाँव में अपना ही साया है परेशान 'जमील' सर पे दस्तार-ए-पर-ओ-बाल-ए-हुमा ख़ूब सही