जुस्तुजू रहरव-ए-उल्फ़त की जो कामिल हो जाए शौक़-ए-मंज़िल ही चराग़-ए-रह-ए-मंज़िल हो जाए हाए ये जोश-ए-तमन्ना ये निगूँ-सारी-ए-इश्क़ वो जो ऐसे में चले आएँ तो मुश्किल हो जाए जुस्तुजू शर्त है मंज़िल नहीं मशरूत-ए-तलब गुम हो इस तरह कि गर्द-ए-रह-ए-मंज़िल हो जाए वस्ल का ख़्वाब कुजा लज़्ज़त-ए-दीदार कुजा है ग़नीमत जो तिरा दर्द भी हासिल हो जाए ज़ब्त भी सब्र भी इम्कान में सब कुछ है मगर पहले कम्बख़्त मिरा दिल तो मिरा दिल हो जाए आह उस आशिक़-ए-नाशाद का जीना ऐ दोस्त जिस को मरना भी तिरे इश्क़ में मुश्किल हो जाए कामराँ है वो मोहब्बत जो बने रूह-ए-गुदाज़ दर्द-ए-दिल हद से गुज़र जाए तो ख़ुद दिल हो जाए महफ़िल-ए-दोस्त में चलता तो हूँ ऐ दीदा-ए-शौक़ इश्क़ का राज़ न अफ़साना-ए-महफ़िल हो जाए क़ाबिल-ए-रश्क बने ज़िंदगी-ए-इश्क़ उस की जिस की तू ज़िंदगी-ए-इश्क़ का हासिल हो जाए अपने 'एहसान' को तू ही कोई तदबीर बता जिस से ये नंग-ए-मोहब्बत तिरे क़ाबिल हो जाए