जुस्तुजू तेरी दर्द-ए-सर ठहरी ले के मुझ को ये दर-ब-दर ठहरी तुझ से मंसूब जब तलक मैं रही मेरी हस्ती भी मो'तबर ठहरी ये मिरी ज़िंदगी तुम्हारे बग़ैर कितनी बे-रंग-ओ-मुख़्तसर ठहरी मुश्किलें मुझ को ढूँडने निकलें दम जो लेने को लम्हा भर ठहरी ये सलीक़ा तुझी से आया है बात करने में बा-हुनर ठहरी उफ़ तिरी बाँहों का हिसार-ए-लतीफ़ यूँ लगा शाम में सहर ठहरी जिस पे महव-ए-सफ़र रहा तू मुदाम बस वही मेरी रहगुज़र ठहरी एक तुम हो कि हाथ में पत्थर और मैं एक शीशागर ठहरी अपने इरफ़ान-ए-ज़ात से 'रूमी' अपने अंदर मैं मो'तबर ठहरी