कान लगा के सुनती क्या है क्या दीवार में दर रक्खा है बीते कल ने दस्तक दी है यादों का इक शहर मिला है कमरे की दीवार का गिर्या हाँ हाँ मैं ने आप सुना है मेरी इक करवट पर जागे नींद का वो कितना कच्चा है रोटी माँगते बच्चे को तू कैसे धक्के मार रहा है सुनते हैं इक शहज़ादी ने इक दरवेश का साथ चुना है कोई सनद दरकार नहीं है कच्चा पक्का जो लिक्खा है धड़कन धड़कन कुर्लाती है देखो मेज़ पे दुख रक्खा है