काँटों पे चल रहा हूँ मोहब्बत की राह में किस हुस्न की बहार है मेरी निगाह में दुनिया गुनाहगार है तेरी निगाह में ज़ाहिद है तेरा ज़ो'म भी दाख़िल गुनाह में ज़र्रों में क्या नहीं है जो है मेहर-ओ-माह में पस्ती निगाह में है बुलंदी निगाह में दीवानगान-ए-इश्क़ को दुनिया की क्या ख़बर दुनिया को छोड़ आए कहीं गर्द-ए-राह में हर मंज़िल-ए-हयात से गुज़रा चला गया हर मरहले पे आप थे मेरी निगाह में कौनैन में समाए न 'आरिफ़' वो हुस्न जब किस का है ज़र्फ़ रख सके उस को निगाह में