कब दिल के ज़ख़्म चारागरों से रफ़ू हुए जो हाथ दिल की सम्त बढ़े सब लहू हुए शिकवे हुए कि जौर हुए सब हुए तमाम वो हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़ से जब रू-ब-रू हुए जिस के सबब हर एक सुख़न-फ़हम है ख़फ़ा मुद्दत हुई है आप से वो गुफ़्तुगू हुए कीजे तलाश तर्क-ए-तमन्ना की सूरतें गुज़रा है इक ज़माना जिगर को लहू हुए शोरिश है एक मौज-ए-तलातुम की थम गई शोरीदा-सर ज़माने की जब आबरू हुए निकले जो मंज़िलों की तमन्ना में खो गए जो संग-ए-दर पे तेरे झुके सुरख़-रू हुए