कब किस को मयस्सर है ये रुत्बा ये अमारी फूलों की कटोरी में है शबनम की सवारी आँखों में जलाए गए फिर ख़्वाब तुम्हारे सीने से खरोची गई फिर याद तुम्हारी ऐ लाडली बच्ची मेरी बाबा तेरे सदक़े सौ रंग मिरे घर में तू ले कर है पधारी सब इल्म-ओ-अदब ले गया 'साजिद' का घराना बैठे रहे कासा लिए मसनद पे भिकारी