कब मोहब्बत से देखते हैं मुझे सब ज़रूरत से देखते हैं मुझे मेरा नींदों के साथ झगड़ा है ख़्वाब हसरत से देखते हैं मुझे जंग जीती है कैसे ख़ुश्बू से फूल हैरत से देखते हैं मुझे मैं तो उन से भी प्यार करता हूँ जो हिक़ारत से देखते हैं मुझे सारे तिरयाक पास हैं मेरे साँप नफ़रत से देखते हैं मुझे बैअ'त-ए-लफ़्ज़ जब से की मैं ने हर्फ़ इज़्ज़त से देखते हैं मुझे मैं तो सहरा का रहने वाला हूँ पेड़ क़िस्मत से देखते हैं मुझे तेरा दीदार उन की मज़दूरी जो भी मेहनत से देखते हैं जाने कब चश्म-ए-नीलगूँ बरसे अश्क मुद्दत से देखते हैं मुझे