कब तक हवा-ए-शौक़ से दिल को बचाइए मौसम का जो भी मशवरा हो मान जाइए पी है अगर शराब तो कुछ लुत्फ़ उठाइए क्यों इतनी एहतियात ज़रा लड़खड़ाइए लेने न देगी चैन मोहब्बत की तेज़ आँच छींटों से उस को आज हवस के बुझाइये इतना लिहाज़ रूह का और इतनी फ़रबही झूटा है शैख़ बातों में उस की न आइए वो बा-वफ़ा नहीं न सही ख़ुश-अदा तो है गर कुछ नहीं तो हज़्ज़-ए-नज़र ही उठाइए वाइ'ज़ बयान-ए-ख़ुल्द बहुत ख़ूब है मगर इक रोज़ उस की बज़्म में भी हो के आइए