कब तलक जी रुके ख़फ़ा होवे आह करिए कि टक हवा होवे जी ठहर जाए या हवा होवे देखिए होते होते क्या होवे कर नमक सूद सीना-ए-मजरूह जी में गर है कि कुछ मज़ा होवे काहिश-ए-दिल की कीजिए तदबीर जान में कुछ भी जो रहा होवे चुप का बाइ'स है बे-तमन्नाई कहिए कुछ भी तो मुद्दआ' होवे बेकली मारे डालती है नसीम देखिए अब के साल क्या होवे मर गए हम तो मर गए तो जी दिल-गिरफ़्ता तिरी बला होवे इश्क़ किया है दुरुस्त ऐ नासेह जाने वो जिस का दिल-लगा होवे फिर न शैताँ सुजूद-ए-आदम से शायद उस पर्दे में ख़ुदा होवे न सुना रात हम ने इक नाला ग़ालिबन 'मीर' मर रहा होवे