कब तलक शादाबी-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र काम आएगी

कब तलक शादाबी-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र काम आएगी
गीले कपड़े से हवा पानी उड़ा ले जाएगी

भागते घोड़े की रासें खींचने से फ़ाएदा
डूबते सूरज की क्या रफ़्तार कम हो जाएगी

ज़ेहन पर फैला रखे हैं झींगुरों ने दाएरे
आज जो भी बात सोचूँगा मुझे उलझाएगी

तक रहे हैं किस की जानिब नजम ख़ेमे गाड़ कर
धूप निकलेगी तो पहले मेरे घर में आएगी

खिल उठा हूँ आज मैं भी उस की सूरत देख कर
ये घड़ी जब आएगी मुझ को यूँही महकाएगी

फ़स्ल सूरज में उगी है तमतमाती है ज़मीं
ये कहानी प्यार करने से समझ में आएगी

जिस्म की पुतली को रौशन कर के दुनिया से गुज़र
आँख ख़्वाहिश की नज़र रखती है धोका खाएगी

ज़र्द पत्ते की तरह बे-घर पड़ा हूँ राह में
ज़र्द पत्ते को कोई शाख़-ए-हवा अपनाएगी

मिट्टियों की तह में मोती पानियों पर दाएरे
सोचता हूँ कौन सी दौलत मिरे हाथ आएगी

साथ लेती जा हमें भी डूबते सूरज की धूप
रात के ग़ारों में तेरी याद हम को आएगी

वो भी ख़ुश्बू की तरह ख़ुद से अलग रहने लगा
जाने ये मौज-ए-ख़याल उस को कहाँ ले जाएगी

खिल रही है ख़्वाहिशों की धूप सारे जिस्म में
आँख खोलूँगा तो ये तस्वीर भी खो जाएगी

बस्तियों में जंगलों में वादियों में कोह में
मेरी ख़ुश्बू मेरी धड़कन मेरी आहट जाएगी

कितनी तस्वीरें मिरे अंदर से उभरेंगी 'ख़लील'
जब तिरी आवाज़ कानों से मिरे टकराएगी


Don't have an account? Sign up

Forgot your password?

Error message here!

Error message here!

Hide Error message here!

Error message here!

OR
OR

Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link to create a new password.

Error message here!

Back to log-in

Close