कभी आहें कभी नाले कभी आँसू निकले उन से आग़ाज़-ए-सुख़न के कई पहलू निकले यूँ भी वो बज़्म-ए-तसव्वुर से गुज़र जाते हैं जैसे लय साज़ से या फूल से ख़ुश्बू निकले है इस उम्मीद पे सैक़ल हुनर-ए-तेशा-ज़नी सीना-ए-संग से शायद कोई गुल-रू निकले क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन ही सही कुछ बात करो किसी उनवाँ से तो ज़िक्र-ए-क़द-ओ-गेसू निकले ग़म-ए-दौराँ ने किया अहल-ए-तमन्ना का वो हाल दश्त से जैसे हिरासाँ कोई आहू निकले हम जिन्हें 'होश' तजाहुल से ख़ता समझे थे नावक-ए-नाज़ वो सब दिल में तराज़ू निकले