कभी अव्वल नज़र आना कभी आख़िर होना और वक़्फ़ों से मिरा ग़ाएब ओ हाज़िर होना मैं किसी और ज़माने के लिए हूँ शायद इस ज़माने में है मुश्किल मिरा ज़ाहिर होना मैं न होने पे ही ख़ुश था मगर ऐसे हुआ फिर मुझ को नाचार पड़ा आप की ख़ातिर होना दूर हो जाऊँ भी इस बाग़-ए-बदन से लेकिन कहीं मुमकिन ही नहीं ऐसे मनाज़िर होना वाक़ई तुम को दिखाई ही नहीं देता हूँ या ज़रूरत है तुम्हारी मिरा मुनकिर होना रास्ता आप बनाना ही कोई सहल नहीं फिर उसी रास्ते का आप मुसाफ़िर होना वो मक़ामात-ए-मुक़द्दस वो तिरे गुम्बद ओ क़ौस और मिरा ऐसे निशानात का ज़ाएर होना बादलों और हवाओं में उड़ा फिरता मैं काश होता मिरी तक़दीर में ताइर होना काम निकला है कुछ उतना ही ये पेचीदा 'ज़फ़र' जितना आसाँ नज़र आया मुझे शाएर होना