कभी जलाया गया तो कभी बुझाया गया तमाम-उम्र चराग़ों को आज़माया गया अभी वो चाँद फ़लक से उतर के आएगा ये एक ख़्वाब हमें बारहा दिखाया गया किया है प्यास का शिकवा जो आसमाँ से तो सुलगती रेत का मंज़र हमें दिखाया गया तो राज़ खुलने लगे सारे ख़ुशबुओं की तरह हवा को जब भी यहाँ राज़-दाँ बनाया गया बुझे बुझे से थे अश्कों के जुगनू कल की शब तुम्हारे ज़िक्र से आँखों को जगमगाया गया वहीं पे रक़्स बहुत वहशतों का था 'ज्योति' मोहब्बतों का जज़ीरा जिसे बताया गया