कभी जो मारका ख़्वाबों से रत-जगों का हुआ अजीब सिलसिला आँखों से आँसुओं का हुआ जला के छोड़ गया था जो ताक़-ए-दिल में कभी किसी ने पूछा न क्या हाल उन दियों का हुआ लिखा गया है मिरा नाम दुश्मनों में सदा शुमार जब भी कभी मेरे दोस्तों का हुआ मज़ाक़ उड़ाते थे आँधी से पहले सब मेरा जो मेरे घर का था फिर हाल सब घरों का हुआ बदल रही हैं मिरे हाथ की लकीरें फिर कहा न अब के भी शायद नजूमियों का हुआ वफ़ा-शिआर तबीअत का ये सिला है 'नूर' मिरी हयात का हर लम्हा दूसरों का हुआ