कभी जो उस की तमन्ना ज़रा बिफर जाए नशा फिर उस की अना का उतर उतर जाए चराग़-ए-शब में तो जलने का हौसला ही नहीं वो चाहता है कि तोहमत हवा के सर जाए ज़मीं पे ग़लबा-ए-शैताँ फ़लक बरा-ए-मलक बशर ग़रीब परेशाँ कि वो किधर जाए मिरी हयात का सूरज है सू-ए-ग़र्ब मगर मुहाल है कि मिरा ज़ौक़-ओ-शौक़ मर जाए चराग़-ए-ज़ेहन जो रौशन नहीं तो कुछ भी नहीं वो तारे तोड़ के लाए कि चाँद पर जाए