कभी क़ुर्बत है फ़ासले हैं कभी By Ghazal << हम से मिलते थे सितारे आप ... फिर वही शख़्स मिरे ख़्वाब... >> कभी क़ुर्बत है फ़ासले हैं कभी दरमियाँ अपने बे-मज़ा क्या है मुझ से हट कर ज़रा सा चलता है मुझ में इक और दूसरा क्या है हम को जीना न आ सका वर्ना ज़िंदगी जश्न के सिवा क्या है Share on: