कभी मिट कर न फ़ना हसरत-ओ-अरमाँ होंगे बन के दाग़-ए-दिल-ए-मायूस नुमायाँ होंगे दाग़-हा-ए-दिल-ए-सोज़ाँ को मैं रखता हूँ अज़ीज़ यही इक रोज़ अयाग़-ए-मय-ए-इरफ़ाँ होंगे मेरी उल्फ़त ने बढ़ाया है तिरा हुस्न-ओ-जमाल मह-जबीं अब तुझे देखेंगे तो हैराँ होंगे साया-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ जो समझते हैं तुझे वो तिरे शुक्र-गुज़ार ऐ शब-ए-हिज्राँ होंगे शिकवा-ए-जोर पर ऐ दोस्त न हो शर्मिंदा तू जो पछताएगा हम और पशेमाँ होंगे रास आएगा उन्हीं को ये जुनून-ए-उल्फ़त जो गुल-ए-तर की तरह चाक-गरेबाँ होंगे देख कर शैख़-ओ-बरहमन की अदावत या-रब सोचता हूँ कभी इंसान भी इंसाँ होंगे दो बहारों को न दावत कि असीरान-ए-क़फ़स आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी से परेशाँ होंगे