कभी सदियों को लम्हा मारता है कभी दरिया को क़तरा मारता है कहीं पर एक को मजमे ने मारा कहीं मजमे को तन्हा मारता है मैं ये फ़हम-ओ-फ़रासत बेच तो दूँ मुझे दिल का कटहरा मारता है हवाले जब से तेरे दिल किया है उसे तेरा हवाला मारता है तुझे घर से भगा सकता हूँ तेरे मगर बहनों का चेहरा मारता है मोहब्बत से मिरी तुम जान ले लो मुझे बस सर्द लहजा मारता है अदू काँपे है मेरा नाम सुन कर मुझे मेरा मसीहा मारता है मैं जिस पर फ़र्ज़ की तकमील कर दूँ वो मेरे हक़ पे डाका मारता है मिरे मालिक तिरा बंदा नहीं क्या वो जो मज़दूर बच्चा मारता है