कभी सूरज है कभी ज़ोहरा-जमालों जैसा क्यूँ वो लगता है मुझे मेरी मिसालों जैसा हर तरह से वो बहुत अच्छा है लेकिन उस को देखना चाहती हूँ अपने ख़यालों जैसा चाहती हूँ कि करूँ उस से मोहब्बत खुल कर लेकिन अंजाम न हो चाहने वालों जैसा किस तरह मान लूँ मैं उस की निसाबी बातें उस का मौक़िफ़ है किताबों के हवालों जैसा मेरी ज़िद है उसे हल कर के रहूँगी मैं भी वो जो लगता है रियाज़ी के सवालों जैसा आज के दिन भी घटा खुल के न बरसे शायद आज का दिन भी है वहशत में ग़ज़ालों जैसा ऐ मोहब्बत में मुझे चाँद सा कहने वाले मुझ 'क़मर' को न समझ मेरी मिसालों जैसा