कभी सूरत जो मुझे आ के दिखा जाते हो दिन मिरी ज़ीस्त के कुछ और बढ़ा जाते हो इक झलक तुम जो लब-ए-बाम दिखा जाते हो दिल पे इक कौंदती बिजली सी गिरा जाते हो मेरे पहलू में तुम आओ ये कहाँ मेरे नसीब ये भी क्या कम है तसव्वुर में तो आ जाते हो ताज़ा कर जाते हो तुम दिल में पुरानी यादें ख़्वाब-ए-शीरीं से तमन्ना को जगा जाते हो इतनी हम को भी दिखाते हो मसीहा-नफ़सी हसरत-ए-मुर्दा को आ आ के जिला जाते हो निगह-ए-लुत्फ़ में जादू है तुम्हारी जानाँ सारे शिकवे-गिले इक पल में भुला जाते हो शोला-ए-तूर से तू वादी-ए-ऐमन ही जला तुम जहाँ आते हो इक आग लगा जाते हो है तो 'नैरंग' वही इश्क़ का रोना-धोना इन्ही बातों में नया रंग दिखा जाते हो