कभी तेग़-ए-तेज़ सुपुर्द की कभी तोहफ़ा-ए-गुल-ए-तर दिया किसी शाह-ज़ादी के इश्क़ ने मिरा दिल सितारों से भर दिया ये जो रौशनी है कलाम में कि बरस रही है तमाम में मुझे सब्र ने ये समर दिया मुझे ज़ब्त ने ये हुनर दिया ज़मीं छोड़ कर नहीं जाऊँगा नया शहर एक बसाऊँगा! मिरे बख़्त ने मिरे अहद ने मुझे इख़्तियार अगर दिया किसी ज़ख़्म-ए-ताज़ा की चाह में कहीं भूल बैठूँ न राह में किसी नौजवाँ की निगाह ने जो पयाम वक़्त-ए-सहर दिया मिरे साथ बूद-ओ-नबूद में जो धड़क रहा है वजूद में इसी दिल ने एक जहान का मुझे रू-शनास तो कर दिया