कभी तो सामने आ बे-लिबास हो कर भी अभी तो दूर बहुत है तू पास हो कर भी तेरे गले लगूँ कब तक यूँ एहतियातन मैं लिपट जा मुझ से कभी बद-हवास हो कर भी तू एक प्यास है दरिया के भेस में जाना मगर मैं एक समुंदर हूँ प्यास हो कर भी तमाम अहल-ए-नज़र सिर्फ़ ढूँढते ही रहे मुझे दिखाई दिया सूरदास हो कर भी मुझे ही छू के उठाई थी आग ने ये क़सम कि ना-उमीद न होगी उदास हो कर भी