कभू न उस रुख़-ए-रौशन पे छाइयाँ देखीं घटाएँ चाँद पे सौ बार छाइयाँ देखीं फ़तादगी में जो इज़्ज़त है सर-कशी में कहाँ कि नक़्श-ए-पा की यहाँ रह-नुमाइयाँ देखीं बलाएँ लेवे है हाथों से उस की ज़ुल्फ़ों की ये दस्त-ए-शाना की हम ने रसाइयाँ देखीं चमन में नाख़ुन-ए-हर-बर्ग-ए-गुल से बुलबुल की हज़ार रंग से उक़्दा-कुशाइयाँ देखीं ज़बान-ए-तेशा बहुत काम आई ऐ फ़रहाद जो इश्क़ ने तिरी ज़ोर-आज़माइयाँ देखीं नज़र में अपनी वो फिरती हैं सूरतें हैहात फ़लक ने ख़ाक में क्या क्या मिलाइयाँ देखीं किसू ने ली न ख़बर ग़र्क़-ए-बहर-ए-उल्फ़त की इन आश्नाओं की ये आश्नाइयाँ देखीं हमारी उस की कुदूरत की वज्ह कुछ न रही कि आइने ने दिलों की सफ़ाइयाँ देखीं हम अपना तुझ को हवा-ख़्वाह जानते थे सबा बहारें तू ने भी तन्हा उड़ाइयाँ देखीं बयान किस से करूँ अपनी तीरा-बख़्ती का अँधेरी रातें वो ऐ दिल फिर आइयाँ देखीं 'नसीर' कीजे वफ़ा कब तलक ब-क़ौल-ए-'मीर' जफ़ाएँ देख लियाँ बेवफ़ाइयाँ देखीं