क़दम क़दम पे गिरे उट्ठे बार बार चले तमाम उम्र इसी तौर हम गुज़ार चले ज़माना गुज़रा कि दिल नज़्र-ए-हादसात हुआ अब एक जाँ थी उसे ज़िंदगी पे वार चले फ़ुज़ूँ कुछ और हुआ बंदिशों से जोश-ए-जुनूँ रिहा हुए जो क़फ़स से तो सू-ए-दार चले अदा-ए-लग़्ज़िश-ए-रिंदान-ए-बादा-मस्त कहाँ मचल मचल के नसीम-ए-चमन हज़ार चले रुकूँ तो गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर ठहर जाए चलूँ तो साथ हर इक नक़्श-ए-रहगुज़ार चले जले चराग़ खिले गुल उबल पड़े नग़्मे जहाँ जहाँ तिरे धोके में हम पुकार चले हुआ तो ख़ून-ए-दिल-ओ-जान-ओ-आरज़ू 'अतहर' मज़ाक़-ए-अहल-ए-मोहब्बत मगर सँवार चले