क़दमों में जब से मेरे हैं तारे धरे हुए सारे अदू हैं घर में बिचारे धरे हुए अच्छा तो ठीक है मुझे चलना उसी पे है रस्ता कि जिस पे होंगे ख़सारे धरे हुए तारी है मौज मौज पे कुछ इस लिए भी ख़ौफ़ आया हूँ रौंद कर मैं किनारे धरे हुए इक जंग थी हमारी जिसे जीतने के बा'द पलकों पे क्यूँ थे उस के इशारे धरे हुए उन से हवा पे नक़्श हुई नग़्मगी 'नवेद' जितने भी थे चराग़ हमारे धरे हुए