कड़ी निगाह रखेगा वो सीम-तन मुझ पर कि मेहरबाँ है किसी फूल का बदन मुझ पर मैं एक खोई हुई आग की तलाश में था शगुफ़्त होने लगे हैं मगर चमन मुझ पर फिर एक बार वही धूप ओढ़ कर निकलूँ करेगा छाँव अगर आज भी गगन मुझ पर फ़िराक़-ओ-वस्ल हक़ीक़त में एक हों कि न हों किसी के इश्क़ में लाज़िम है हुस्न-ए-ज़न मुझ पर अलग अलग ही रहेंगे दम-ए-विसाल भी हम मैं अपने मन पे फ़िदा हूँ न मेरा मन मुझ पर किसी तिलिस्म से रौशन है मेरा दिल 'साजिद' दयार-ए-ग़ैब से उतरेगा कोई फ़न मुझ पर