काग़ज़ की नाव हूँ जिसे तिनका डुबो सके यूँ भी नहीं कि आप से ये भी न हो सके बरसात थम चुकी है मगर हर शजर के पास इतना तो है कि आप का दामन भिगो सके ऐ चीख़ती हवाओ के सैलाब शुक्रिया इतना तो हो कि आदमी सूली पे सो सके दरिया पे बंद बाँध कर रोको जगह जगह ऐसा न हो कि आदमी जी भर के रो सके हल्की सी रौशनी के फ़रिश्ते हैं आस-पास पलकों में बूँद बूँद जहाँ तक पिरो सके