काग़ज़ की नाव क्या हुई दरिया किधर गया बचपन को जो मिला था वो लम्हा किधर गया मादूम सब हुईं वो तजस्सुस की बिजलियाँ हैरत में डाल दे वो तमाशा किधर गया फिर यूँ हुआ कि लोग मशीनों में ढल गए वो दोस्त लब पे ले के दिलासा किधर गया क्या दश्त-ए-जाँ की सोख़्ता-हाली कहें इसे चाहत में चाँद छूने का जज़्बा किधर गया तारीकियाँ हैं साथ मिरे और सफ़र मुदाम कल तक था हम-क़दम जो फ़रिश्ता किधर गया जो रहनुमा थे मेरे कहाँ हैं वो नक़्श-ए-पा मंज़िल पे छोड़ता था जो रस्ता किधर गया